(डाउनलोड) एनसीईआरटी हिंदी के संशोधित पाठ्यक्रम
1. भाषा, भाषा-शिक्षण और बहुभाषिता
1.0 परिचय
यह पाठ्यक्रम भाषा पढ़ाने वेफ लिए एक विस्तृत रूपरेखा वेफ रूप में बनाया गया है। हमें आशा है कि इस रूपरेखा को विभिन्न राज्य, शिले और वुफछ सीमा तक प्रखंड भी अपने स्थानीय संदर्भों और अपने क्षेत्रा वेफ बच्चों की विभिन्न क्षमताओं वेफ अनुसार अपनाएँगे।
सभी मनुष्य विभिन्न उद्देश्यों वेफ लिए भाषा का इस्तेमाल करते हैं। यहाँ तक कि विविध प्रकार की अक्षमता वाले बच्चे, जैसे- दृष्टिबाधित या श्रवणबाधित बच्चे भी संप्रेषण की जटिल और समृ(द्ध व्यवस्था का प्रयोग करते हैं, जिस प्रकार कोई भी सामान्य बच्चा करता है। इसलिए इसमें आश्चर्य की कोई बात नहीं है कि अधिकांश व्यक्ति यह सोचते हैं कि वे भाषा वेफ बारे में बहुत वुफछ जानते हैं। निःसंदेह यह स्थिति दुर्भाग्यपूर्ण है। भाषा वेफवल संप्रेषण का साधन ही नहीं है, बल्कि यह एक माध्यम भी है जिसवेफ सहारे हम अधिकांश जानकारी प्राप्त करते हैं। यह एक व्यवस्था है जो काप़फी सीमा तक हमारे आस-पास की वास्तविकताओं और घटनाओं को हमारे मस्तिष्क में व्यवस्थित करती है। यह कई तरीकों से हमारी पहचान का एक चिु है और अंततः यह समाज में सत्ता-शक्ति से बहुत नशदीक से जुड़ी हुई है। हमें यह भी याद रखना चाहिए कि हम वेफवल दूसरों से बात करने वेफ लिए ही नहीं, बल्कि अपने आपसे भी बात करने वेफ लिए भाषा का इस्तेमाल करते हैं। यह वास्तव में भाषा का महत्वपूर्ण कार्य है। हम अपने विचारों को वैफसे स्पष्ट कर सकते हैं जब तक कि हम पहले अपने आप से बात करना न सीखें।
विभिन्न विषय-क्षेत्रों, जैसे-इतिहास, भौतिक विज्ञान अथवा गणित को समझने वेफ लिए हमें भाषा की आवश्यकता होती है। चाहे हम प्रवृफति को देखें या समाज को हम काप़फी हद तक उन्हें अपनी भाषा की संरचना वेफ माध्यम से ही देखते हैं। यह हमारी भाषा है जो हमें यह बताती है कि हम 'बप़र्फ' देखते हैं या 'आइस' या पिफर आइस और 'स्नो' दोनों देखते हैं अथवा एक ही वस्तु वेफ लिए 20 से भी अधिक शब्द- जैसा कि एस्कीमो देखते हैं। अपनी भाषा वेफ मुद्दे को लगातार आधार बनाकर कोई भी समुदाय किसी भी समय एक अलग राज्य की माँग कर सकता है। भारत में कई बार संविधान की आठवीं अनुसूची में अपनी भाषाओं को शामिल कराने वेफ लिए गंभीर प्रयास किए गए हैं। जहाँ तक भाषा और सत्ता/वर्चस्व वेफ संबंध का प्रश्न है- हम सभी जानते हैं कि जब हम किसी खास तरह वेफ उच्चारण अथवा लेखन-व्यवस्था को सही, शु( और मानक वेफ रूप में देखते हैं तो दरअसल हम यह कहना चाहते हैं कि समाज में वर्चस्वशाली समूह का अंग बनने वेफ लिए आपको इसी को अपनाना होगा और व्यवहार में लाना होगा।
अधिकांश बच्चे स्कूल आने से पहले वेफवल एक भाषा नहीं, बल्कि अक्सर अनेक भाषाएँ सीख लेते हैं। स्कूल आने से पहले बच्चा लगभग पाँच हशार अथवा उससे भी अधिक शब्दों को जानता है। अतः बहुभाषिकता हमारी पहचान अथवा अस्मिता की निर्धारक है। यहाँ तक कि दूर-दराज वेफ गाँवों का तथाकथित एक 'एकल भाषी' भी अनेक संप्रेषणात्मक स्थितियों में सही तरीवेफ की भाषा इस्तेमाल करने की क्षमता रखता है। अनेक अध्ययनों से पता चला है कि बहुभाषिकता का संज्ञानात्मक विकास, सामाजिक सहनशीलता, विवेंफद्रित चिंतन एवं शैक्षिक उपलब्धि से सकारात्मक संबंध होता है। भाषावैज्ञानिक दृष्टि से, सभी भाषाएँ चाहे वे बोली, आदिवासी या खिचड़ी भाषाएँ हों, सब समान रूप क्वूदसवंकमक थ्तवउरू ीजजचरूध्ध्बइेमचवतजंसण्बवउ से वैज्ञानिक होती हैं। भाषाएँ एक-दूसरे वेफ सान्निध्य में पफलती-पफूलती हैं साथ ही अपनी विशेष पहचान भी बनाकर रखती हैं। बहुभाषिक कक्षा में यह बिलवुफल अनिवार्य होना चाहिए कि हर बच्चे की भाषा को सम्मान दिया जाए और बच्चों की भाषायी विभिन्नता को शिक्षण-विधियों का हिस्सा मान कर भाषा सिखाई जाए।
1.1 भाषा-क्षमता
सभी बच्चे तीन साल की उम्र से पहले ही न वेफवल अपनी भाषा की बुनियादी संरचनाएँ और उपसंरचनाएँ सीख जाते हैं, बल्कि वे यह भी सीख जाते हैं कि विभिन्न परिस्थितियों में इनका किस प्रकार उचित प्रयोग करना है। ;उदाहरण वेफ लिए वे वेफवल भाषिक दक्षता नहीं, बल्कि संप्रेषण की दक्षता भी सीखते हैंद्ध तीन साल वेफ बच्चे वेफ संज्ञानात्मक क्षेत्रा में आने वाले किसी भी विषय पर उसवेफ साथ सार्थक बातचीत की जा सकती है। अतः यह स्वाभाविक है कि समृ( और संवेदनपरक अवसरों वाले बच्चों वेफ अलावा सामान्य बच्चे जन्मजात/नैसर्गिक भाषा-क्षमता वेफ साथ पैदा होते हैं- जैसे कि चाॅम्स्की ने तर्क दिए हैं। यह सच है कि विभिन्न भाषाओं में विभिन्न वस्तुओं वेफ लिए विभिन्न शब्द होते हैं और विभिन्न तरह वेफ पदबंध और अभिव्यक्तियाँ आदि होती हैं, पिफर भी हम जानते हैं कि हर भाषा में संज्ञा, क्रिया और विशेषण जैसी श्रेणियाँ होती हंै अथवा कर्ता$क्रिया$कर्म ;अंग्रेशी की तरहद्ध या कर्ता$कर्म$क्रिया ;हिंदी की तरहद्ध का शब्द क्रम होता है। इसवेफ अतिरिक्त उनवेफ अपने कई नियम होते हैं जो सभी भाषाओं में अपने होते हैं। ;1.2 देखेंद्ध भाषा क्षमता को जन्मजात/नैसर्गिक मानने पर हासिल होने वाले शिक्षण प(ति संबंधी दो निष्कर्ष अत्यंत महत्वपूर्ण हैं। बच्चों को समुचित अवसर प्रदान करना जिससे बच्चे सहजता वेफ साथ नई भाषा को सीख सवेंफ। दूसरा, पढ़ाते समय व्याकरण की अपेक्षा विषयवस्तु पर अधिक ध्यान देना।
1.2 नियमब( व्यवस्था वेफ रूप में भाषा
वैज्ञानिक तरीवेफ से भाषा की संरचना का अध्ययन करने वाले भाषावैज्ञानिकों वेफ लिए किसी भी भाषा का व्याकरण अनेक उपव्यवस्थाओं से बनी एक बहुत अमूर्त व्यवस्था है। ध्वनि वेफ स्तर पर संसार की भाषाएँ अपनी अनुतान संरचनाओं और सुर रेखाचित्रा वेफ रूप में लय और संगीत वेफ साथ निकटता वेफ साथ जुड़ी हुई हैं। उदाहरण वेफ िए किसी भी भारतीय भाषा में अथवा यहाँ तक कि अंग्रेशी में भी शब्द वेफ शुरू में तीन व्यंजन ध्वनियाँ एक साथ नहीं आतीं और जहाँ भी इन तीन ध्वनियों वेफ आने वेफ विकल्प हैं- वे बहुत सीमित हैं। पहला व्यंजन 'स्' ;ेद्ध दूसरा व्यंजन वेफवल 'प्' ;चद्ध, 'त्' ;जद्ध अथवा 'क्' ;ाद्ध तथा तीसरा व्यंजन वेफवल 'य्' ;लद्ध, 'र्' ;तद्ध 'ल्' ;सद्ध अथवा 'व्' ;ूद्ध ही हो सकता है जैसा कि हिंदी वेफ 'स्त्राी' शब्द में । अंग्रेजी में ष्ेचतपदहश्ए ष्ेजतममजश्ए ष्ेुनंेीश्ए ष्ेबतमूश् आदि भी इसी प्रकार वेफ उदाहरण हैं। भाषा शब्द, वाक्य और प्रोक्ति ;कपेबवनतेमद्ध वेफ स्तर पर नियमों से बंधी हुई है। इनमें से वुफछ नियम हमारी जन्मजात भाषा-क्षमता में पहले से ही खूब होते हैं लेकिन अधिकांश नियम सामाजिक-ऐतिहासिक परिवेश में संपे्रषण वेफ माध्यम से बनते हैं। उनमें सामाजिक व क्षेत्राीय विविधता देखने को मिलती है। इस तरह की भाषिक विविधता कक्षा में हमेशा उपस्थित रहती है और एक शिक्षक को उसकी जानकारी होनी चाहिए। साथ ही जहाँ तक संभव हो उसका सकारात्मक प्रयोग करना चाहिए।
1.3 बोलना और लिखना
बोलने और लिखने में जो बुनियादी अंतर है वह यह है कि लिखित भाषा सचेत रूप से नियंत्रित रहती है तथा समय में स्थिर हो जाती है। हम जब चाहें तब उस पर वापस आ सकते हैं। मौखिक भाषा अपनी प्रवृफति में क्षणिक और लिखित भाषा की तुलना में बहुत जल्दी बदलने वाली होती है। इसलिए मौखिक और लिखित भाषा वेफ बीच की असंगति को लेकर किसी को आश्चर्यचकित होने की आवश्यकता नहीं है। वाव्फ और लिपि वेफ बीच कोई दैविक संबंध नहीं है। मौखिक अंग्रेशी और रोमन लिपि वेफ बीच अथवा मौखिक संस्वृफत अथवा हिंदी भाषा तथा देवनागरी लिपि वेफ बीच कोई परमपावन संबंध नहीं है। वास्तव में संसार की सभी भाषाएँ वुफछ मामूली बदलाव/संशोधन/परिवर्तन वेफ साथ एक ही लिपि में लिखी जा सकती हैं, ठीक उसी तरह जिस तरह
माध्यमिक एक भाषा को संसार की सभी लिपियों में लिखा जा सकता है। वाव्फ एवं लिपि वेफ बीच इस संबंध वेफ प्रति जागरूकता वेफ कई महत्वपूर्ण शैक्षिक निहितार्थ हैं। जो शिक्षक इस वस्तुस्थिति अथवा तथ्य से परिचित हैं वे अकसर त्राुटियों वेफ प्रति अपने दृष्टिकोण में बदलाव लाते हैं तथा नवाचारी शिक्षण-विधियों का विकास करना प्रारंभ करते हैं।
1.4 भाषा, साहित्य और सौंदर्यबोध
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